Wednesday, 20 April 2016

मैं यह सब सपने में ही क्यों देखता हूँ |




मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ |

जहां अछे विचार धरओंको मिले प्रतिष्ठा
और विकृती की होगी अप्रतिष्ठा
यह राष्ट्र की एक सुंदर प्रतिमा  हो
राष्ट्रप्यार का जहां सम्मान हो

मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ|

गरीबी का न था निशाना
अमीरोमे अभिनिवेश न था
राह चलनेवाले   भी था यहाँ  सम्मान हक़दार
ऊँची गाड़ी  वालोंका का था भी  यहाँ  इमांन

मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ|

 कष्ट करनेवालो का भी यहाँ  होता  है सम्मान
  बुद्धिवादियों  पर भी  निष्ठा होती  है
मनुष्य के मनुष्यत्व का भी यहाँ होता था  आदर
 मनुष्य के विकृती का यहाँ होता है अनादर

मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ |

यहां सन्मान  प्राप्त है  उद्योगीको
यहाँ नहीं है जगह खाली बैठने वालोंको
ईमानदारी की  यहाँ होती है जित
बेईमानी मुंह के बल गिरती है

मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ |

चाहता हूँ सच बने ये सदा
मन ही मन सोचता  हूँ
नींद से जगाता हूँ
सपनो से परे इस जगत में चलता रहता हूँ

मैं यह सब सपने में  ही क्यों  देखता हूँ|

सुनील 20/04/16

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