वो बाप ही था खडा
मनमें सबसे बडा।
आपने कोशीश से
अपनी मेहनत से
उसने हमको है पढ़ा।
वो बाप. ,,,,,,,,,,,,,,,,
\चाहे ओ बाहर से
कितना भी बने कठोर
अंदरसे हमारी उन्न्ति के लिये
खुद को है गढ़ा।
वो बाप,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वो अंदर से मुलायम
और आती सवेंदनशील
पर बाहर से दिखाता है
खुद को टेढ़ा।
वो बाप,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वो अथांग सागर है प्यारका
पर नमक के खातीर
उसे समज़ना कठीन है बढ़ा।
सुनील २३/४/१६
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