Monday, 3 October 2016

पानी पानी बरस रहा है






पानी पानी बरस रहा है 
जीवन  जीने के लिए तरस  रहा है 
क्यों देता तू इतना 
जब जरूरत नही होती जितना 

सूखा देता तो इतना 
पानी के लिये हरेक तरसता 
पानी देता तो इतना 
सूखे के लिए हरेक तरसता 

देता तो छप्पर फाड़के देता 
वरना छप्पर भी नसीब न होता 
दे दे के तू त्राही त्राही मचाता 
न देके तू  त्राही त्राही बजाता 


क्या कुसूर होता उनका 
जो ज्यादा से मर जाते 
क्या कुसूर होता उनका 
जो बिना कुछ मिलनेसे मरते 


तेरा हिसाब क्यों नही देखता 
जो तेरेसे डरते 
उनको तू और डरता 
बाकी जो तेरेसे न खोप खाते 
उनको तू मजे लुटाता 

अब न भरोसा रहा मेरा 
देर आये दुरुस्त आये पर 
अब देर भी होती तो इतनी 
दुरुस्त का   कोयी  मायना नही रहता 

भरोसा था भरोसा है 
टूटने ने से पहले संभल 
वरना तेरे ज्यादा के चक्कर में 
टूट टूट के बिखर जायेगा 




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