समता बंधुता है इसकी न्यारी
ये विठ्ठलजी की " वारी "
यह सब संत जन ज्ञानदेव ,नामदेव तुकाराम
है एक ही पंक्ती मे न कोई बडा न कोई छोटा
यह होती है केवल भक्ती की " वारी "
याह न भोग लगते यांना भाग लगते
जैसे ही देखा वारकरी घोष बनता
जय जय रामकृष्ण हरी
जैसे ही देखता सामने वारकरी
लगता उसके पाव धारकरी
जैसे ही देखता सामने वारकरी
लगता उसके पाव धारकरी
धुंडता हर कोई हर एक दुसरे मे पांडुरंग हरी
No comments:
Post a Comment