जाने कैसे गुजर गये ये बरस हमारे दरमीयान
पच्चीस बरस हो गये हमे मिलने के दरमीयान
आज कल बाते कम होती है अदाये जादा
उसकी आखे ही बोलती है जुबान से जादा
जाने ,,,,,,,,,,
वो बरसती है तो ऐसे तुफान से बरसती है
चाहे प्यार में या गुस्से में मेरी हालत बनती है
जैसे तुफान में उजडी हुई बस्ती से जादा
जाने,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शादी के तुरंत बाद मेरी जुबान चलती थी जादा
ओ चुपसी बैठती थी अब पलटे भाग हमारे
ओ कैची सी जुबान चलाती हम कपडे की तर चूपसे खुद को
काट लेते है
जाने,,,,,,,,,,,,,,,,
पच्चीस बरस बाद में लगता है हमको न रही
प्यार कि ओ उमंग गलत है हम
पुराना आचर ही लगता है नये से जादा खंमंग
सुनील २२/५/१६
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