Wednesday, 6 July 2016

रचनाकार: काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

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सन १९०६ में हाथरस में जन्मे काका हाथरसी (असली नाम: प्रभुलाल गर्ग) हिंदी हास्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं।


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रचनाकारकाका हाथरसी | Kaka Hathrasi
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
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अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट
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अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख
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अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद
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अंधा प्रेमी अक्ल से, काम नहीं कुछ लेय
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय
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अगर फूल के साथ में, लगे होते शूल
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाक़ूल
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अगर चुनावी वायदे, पूर्ण करे सरकार
इंतज़ार के मजे सब, हो जाएं बेकार
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मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल


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