आज कल इनसान अपने आप को इतना अकेला महसूस कररहा है कि वो अपने आप काबू नाही पा सकता ।
जीवन ज्ञापन में वो खुद्द को इतना उलझा हुवा है कि अपने पराये कि पहचान खो बैठा है ।
उसके जीवन में जिने के लिये जो होड लगी है कि ओ जीवन जिना बिलकुल हि भूल गया है ।
इस संसार कि हर एक चीज पाने कि उसमे लालसा हुई है जिस कि वजह से ओ ता- उमर भागते रहता है ।
यः अकेला पन ,अलझा पण,लालसा उसे उमर भर जिने भी नाही देती ओर मरने भी नही देती ।
क्या ये सही है ?
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