स्वातंत्र्य वीर सावरकर की १०६ बरस हो गये आपने सागर मे छलांग लगाकर स्वतंत्रता अंदोलन में इतिहास रचा था ।।
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के
अग्रिम पंक्ति के सेनानी
और प्रखर राष्ट्रवादी
नेता थे। उन्हें
प्रायः वीर सावरकर के
नाम से सम्बोधित
किया जाता है।
हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक
विचारधारा (हिन्दुत्व)
को विकसित करने
का बहुत बडा
श्रेय सावरकर को
जाता है। वे
न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक
तेजस्वी सेनानी थे अपितु
महान क्रान्तिकारी, चिन्तक,
सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी
वक्ता तथा दूरदर्शी
राजनेता भी थे।
वे एक ऐसे
इतिहासकार भी हैं
जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की
विजय के इतिहास
को प्रामाणिक ढँग
से लिपिबद्ध किया
है। उन्होंने१८५७
के प्रथम स्वातंत्र्य
समर का सनसनीखेज
व खोजपूर्ण इतिहास
लिखकर ब्रिटिश शासन
को हिला कर
रख दिया था
सावरकरजी को ओर उनके साहस को शतशः नमन
ज्योस्तु ते श्रीमहन्मंगले Iशिवास्पदे शुभदे
स्वतंत्रते भगवतिIत्वामहं यशोयुतां वंदे II धृII
राष्ट्राचे चैतन्य मूर्त तूं नीतिसंपदांची
स्वतंत्रते भगवति I श्रीमती राज्ञी तू त्यांची
परवशतेच्या नभांत तूंची आकाशी होशी
स्वतंत्रते भगवती I चांदणी चमचम लखलखशी II
गालावरच्या कुसुमी किंवा कुसुमांच्या गाली
स्वतंत्रते भगवती I तूच जी विलसतसे लाली
तूं सूर्याचे तेज उदधिचे गांभीर्यहि तूंची
स्वतंत्रते भगवतीIअन्यथा ग्रहण नष्ट तेंची II
मोक्ष मुक्ति ही तुझीच रूपें तुलाच वेदांती
स्वतंत्रते भगवतीIयोगिजन परब्रह्म वदती
जे जे उत्तम उदात्त उन्नत महन्मधुर तेंतें
स्वतंत्रते भगवतीI सर्व तव सहचारी होते II
हे अधम रक्त रंजिते I सुजन-पुजिते ! श्रीस्वतंत्रते
तुजसाठिं मरण तें जनन
तुजविण जनन ते मरण
तुज सकल चराचर शरण
भरतभूमीला दृढालिंगना कधिं देशिल वरदे
स्वतंत्रते भगवतीIत्वामहं यशोयुतां वंदे II
हिमालयाच्या हिमसौधाचा लोभ शंकराला
क्रिडा येथे करण्याचा कां तुला वीट आला?
होय आरसा अप्सरांनासरसे करण्याला
सुधाधवल जान्हवीस्त्रोत तो कां गे त्वां त्यजिला? II
स्वतंत्रतेIह्या सुवर्णभूमीत कमती काय तुला?
कोहिनूरचे पुष्प रोज घे ताजें वेणीला
ही सकल-श्री-संयुता I आमची माताभारती असतां
कां तुवां ढकलुनी दिधली
पूर्वीची ममता सरली
परक्यांची दासी झाली
जीव तळमळे, कांतूं त्यजिले उत्तर ह्याचें दे
स्वतंत्रते भगवतीIत्वामहं यशोयुतां वंदे IIधृ II
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Victory to you, O Auspicious One,
O Holy Abode, Eternal Delight!
O Goddess of Freedom, Victorious One, we salute you!
Epitome of our National Soul, Goddess of Freedom O,
Of Virtue and Prosperity supreme Queen you are, lo!
O Goddess of Freedom, you are a star shining
In this darkness of slavery, alone in the sky gleaming!
O Goddess of Freedom, you are the blush that prospers,
On flowers as soft as cheeks, on cheeks as soft as flowers!
You are the depth of the ocean, the radiance of the sun,
O Goddess of Freedom, without you their worth is none!
You are moksh-liberation and by the Yogis esteemed
Hailed you’re, O Goddess, as the Soul Supreme,
O Goddess of Freedom, all your companions are elite
Noble, magnificent, and oh so very sweet!
Soaked in the villain’s blood—you are!
Worshipped by noble men—you are!
Life is to die for You,
Death is to live without You,
All creation surrenders unto you!
O Giver of Boons, clasp our motherland to your bosom, do!
O Goddess of Freedom, Victorious One, we salute you!
E’en Shankar covets our mighty Himalayas of terraced snow,
Oh why does it not please you to sport here anymo’?
Her brilliant waters an Apsara’s mirror verily make
Why oh why, the bountiful Ganges you did forsake?
O Freedom! What did you lack in this GoldenLand?
Each day find a fresh Kohinoor bloom for your strands!
Here she is the Bounteous One, our very own motherland,
So why, oh why did you push her away?
Why did your Motherly love of old wither away?
Over her strangers now hold sway!
Anguished is my soul!
Why, oh why, did you abandon her so, answer me, I pray!
O Goddess of Freedom, O Triumphant One,
We salute you!
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