सभी तरफ आरक्षण के बड़े बड़े आंदोलन खड़े हो रहे है जो इस विविधताका राजनैतिक कारणो के लिये इस्तेमाल का उधारन है । हरेक समुदाय अपना कानून अपना राज चाहने लगेगा तो यह विविधता कबीलो में तब्दील होगी और आज जो अफगानिस्तान में चल रहा है उसे ही दोहरा जायेगा।
यही कारण है की इस विविधता को क़ानूनी एकता में बांधने की जरूरत है उसी लिए विधता की सांस्कृतिक धरोहर को सभालते हुवे सभी के लिये एक ही कानून यह अनिवार्य हो गया है ।
कानून किसी धर्म या किसी मजहब के आधार न होते हुवे यदी ओ मानवता के और स्त्री पुरुष समानता के आधार पर होना चाहिए जिसके कारण ओ सभी के लिये समान अवसर प्रदान करेगा।
समाज मन में बड़े पैमानेपर इस विषय में अस्वस्थता है और ये अस्वथता अब विस्फोट के कगार पर है यदी इसे समय पर दुरुस्त न होने पर समाज में अफरातफरी फ़ैल सकती है ।
आज के तारीख में जिसे मिला है ओ जादा पाने के लिये लड़ रहा है और जिसे न मिला ओ इसे पाने के चक्कर में है । सबसे बड़ा धोका इस बात का है की इसके कारण देश की युवा शक्ती असमंजस में है और इसीका लाभ लेने का मोह राजकीय व्यवस्था में बढ़ रहा है ।
मैं इस अवस्था को रक्षा से ढकी हुई चिंगारी से करूँगा जिसे कुछ लोग हवा देने की पहल कर रहे है यदी उसे हवा मिली तो ओ शोलो में बदल सकती है और हवा देने वाले के साथ सभी को भस्म कर देगी ये संभव है ।
अब इस पर एक ही रास्ता खुला है ओ समान कानून और समान अधिकार है ।
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