Friday, 21 October 2016

समाज में ऋणात्मक ( निगेटिव्ह ) विचार


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समाज में ऋणात्मक ( निगेटिव्ह ) विचार

आज कल इस ऋणत्मक विचार का फॅशेन चल रहा है । जहाँ देखो वहा इस विचार ने मनो पृथ्वी को घेर लिया है । जब भी इन्सान नामक प्राणी अपना मुह खोलता है तो जादा तर लोग इस ऋणत्मक विचार का संवर्धन करते दिखते है ।

इस ऋणत्मकतामें  कोई विषय चुकता नाही अपने स्वास्थ्य से लेकरं विश्व् का कल्याण तक सभी ऋणत्मक नजरिये से देखने का हुन्नर हमने अवगत किया है

क्या ये सही है । इससे वातावरण में ऋणविचारो की भरमार हो रही है । इससे हमारे चौतरफा ऋण भारित वातावरण की गहराई बढ़ रही है ।

इससे क्या नुकसान होगा इसका शायद हमे अंदाजा  नही है । इस ऋण भारित माहौल का असर प्रथमतः हमारे अछे विचारो पर होता है । मनो ये रोग का फैलाव पहले हमारे मन पर होता है । जैसे ही ये मन के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट  होता है अनायास ही ये हमारे शरीर के प्रबन्धन पे असर डालने लगता है । इससे पहले हमारा मन रोगी होता है और ये रोग धीरेसे शरीर पर भी असर दिखाने लगता है ।

इसका छोटासा उदाहरण मै आपके सामने इस लेख के माध्यम से रखना चाहता हूं

जब कोई व्यक्ती आपके सामने बार बार कोई चीज दोहराता है जैसे की इस "धूल भरी हवासे  मेरा गला खराब हो गया है" यदी ये आपके सामने बार बार दोहरना चलु रहा तो आप भी अपना गला साफ करके ये आजमाने लगते है की मेरा गला खराब तो नही हो गया है यहाँ  आपका मन आपसे खेलना शुरू कर देता है और आपको गले मे खराबी न होते हुवे भी कुछ खराश लगने लगती है । 

इससे हमको बचना चहिये ये ऋण विचार हमारे राष्ट्र से लेके हमारे शरीर तक सभी को नुकसान पहोचा सकते  है और इसका एक ही उपाय है ओ है की अपने विचारोंसे अपने आजूबाजू इस विचार प्रक्रिया को हटाना
इससे हमारा और राष्ट्र का फायदा ही होगा । 

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